बुद्ध की यात्रा
कहाँ से लौटे हो तथागत
चेहरे पर लिए अमित आभ
किसने यह प्रश्न उठाया
मैं कब लौट कर आया
चलता रहा हूँ निरंतर
ऊँचे पहाडों पर
रेगिस्तानों
अंधेरी गुफाओं में
अहर्निश ...अविकल
टहल रहा हूँ ।
सागर की कोख में भी
डूबकी लगाई थी
पर
कुछ भी मेरे हाथ नहीं आई थी
क्या हूँ
कौन हूँ
जीवन का उद्देश्य क्या
यह ज्ञान
किसी पीपल के नीचे
नहीं पाया थी
चेतना तो स्वतःप्रेरित थी
बहाना बनी सुजाता की खीर
लेकिन वह एक पीर
कि संसार में ही है वह शाश्वत स्वर
जिसे त्यागने और सहेजने की बात होती है
वह नाद
वह अनहद
जो रखता है
गतिवान जग को
उसे पकडने के लिए
ही मैं चलता रहा हूँ सदियों से
लौटूँगा कैसे
मेरे पीछे के पथ तो
मिट चुके होते हैं
२ जुलाई २०१२
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