अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में कामिनी कामायनी की रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
गीदड़ के भाग्य
पुल
बंदर बाँट
बुद्ध की यात्रा
सपने


 

 

पुल

हवा में तैरते
डूबते
उतराते
शब्दों को सहेज कर
बडे ही जतन से
बनाया था एक पुल उसने

यह पुल
धरती के दो
बिछडे
बिदके
टूकडों को जोडने के लिये नहीं था
दो इंसानी आत्माओं के संगम के लिए
बनाया गया था यह
मगर शायद पुख्ता नहीं था
इसीलिए
दीन और ईमान के नाम का हवाला देकर
भयंकर कुठाराघात किया इसपर
और वह पुल
शब्द शब्द होकर
बिखर गए थे हवा में

२ जुलाई २०१२

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter