गीदड़ के भाग्य
बच्चे को नहलाती धोती
शिकार के सारे गुण पैंतरा
सिखाते सिखाते
शेरनी रो पड़ी
क्या जमाना आ गया है
सदियों से प्राप्त शिक्षा
आज बेमानी हो गई है
और उधर देखो
गीदड़ की चाँदी हो गई है
कुत्ते भी अदा से भौंकते हैं
वक्त पर दगा भी दे जाते
मगर हर तरह की
चालाकियों का इजहार कर
इंसान का प्यार
भी वही पाते
शेर का जमाना चला गया
तो उनकी शिक्षा भी नाकामयाब हो गई
सियारों के शोर में हर
भली चीज खो गई
जिस माँ को नाज़ था
राज्य के शासक को ट्रेनिंग देने की
आज वे बच्चे सहित
पिंजरे में कैद घुटन भरी
चंद लमहे जी रही है
उधर
राजभवन में शान से गद्दीपर बैठी
गीदड की अम्मा कॉफी पी रही है
पत्रकार उनका इंटरव्यू ले रहे हैं
अपने बच्चे को कैसे
इतनी सही परवरिश की
कि वे आज जंगल में शासन कर रहे हैं
माताएँ मुस्कुराती हैं
विभिन्न कोणों से चेहरे घुमाती हैं
यह तो नई शिक्षा नीति है
जो कल राज कर रहे थे
वे जेलों में सड़ रहे हैं
हम लोगों को उन्होंने बहुत सताया है
हमारा अस्तित्व छीन कर
हमें बस धमकाया है
करिश्मा कुदरत का
लोकतंत्र का दामन पकड़
पश्चिम की मदद से
हमने भी अपना राज्य हथियाया है
टी वी - अखबार से
देख सुन कर
चिंतित शेर का परिवार
भाग्य और भगवान के
नाम पर चुपचाप
बहाता रहता है आँखों से
आँसुओं का सहस्त्र सहस्त्र धार
२ जुलाई २०१२
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