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प्रिया तुम्हारी पैजन छम-छम
प्रिया तुम्हारी पैजन छम-छम,
बाजे मन अकुलाए।
जोगी मन को करे बिजोगी,
नैनन नींद चुराए।।
बोले जो मिसरी रस घोले,
शकन हरे पूछ के कैसे?
बसी श्यामली मन में,
धड़कन का घर हिय हो जैसे,
मिलन यामिनी, मद मदिरा ले, जग के दु:ख बिसराए।
कटि नीचे तक, लटके चोटी,
चंद्र वलय के से दो बाले।
ओंठ प्रिया के सहज रसीले,
दो नयना मधुरस के प्याले।
प्रीति प्रिया की, धवल पूर्णिमा, नित अनुराग जगाए।
नयन बोझ उठाए क्षिति का,
तारों में अपने कल देखे।
इधर बावला धीरज खोता -
गीत प्रीत के नित लेखे।।
प्रीत दो गुनी हुई विरह में, मन विश्वास जगाए।
24 अप्रैल 2007
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