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अनुभूति में गिरीश बिल्लोरे ''मुकुल'' की कविताएँ—

क्षणिकाओं में-
चार क्षणिकाएँ

कविताओं में-
गीत गीले हुए
गुमशुदा मानसून
द्रोणाचार्य से-
दौर
प्राप्ति और प्रतीति
प्रिया तुम्हारी पैजन छम-छम
मन का पंछी
माँ

 

गुमशुदा मानसून

कुछ पर्यावरण प्रेमियों के,
प्रकृति को बचाने की कोशिशें,
जिनके हाथ लगती है-
एक तपती हुई दोपहरी
और तड़पती देहों का मेला।।

मौसम विभाग की सलाह
अनदेखे ऊसरी दस्तावेज़,
मुँह चिढ़ाते,
धूप में खेतिहर मजूर-
साधना के वादे निभाते।।
उन्हें भी हासिल है,
तपती दोपहरी,
और तड़पती देह का मेला।।

मेधा से बहुगुणा तक अनशनरत तपस्वी,
रियो-डि-जेनरियो के दस्तावेज़।
उगाने को तत्पर-
नई प्रकृति - नए अनुदेश।
मिलेगी-हमें-
दरकती भू
तपती दोपहरियाँ
और तड़पती देहों का मेला।

24 अप्रैल 2007

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