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अनुभूति में दिविक रमेश की रचनाएँ-

अंजुमन में
रात में भी
आए भी तो
हाक़िम हैं

कविताओं में
उम्मीद
एक बची हुई खुशी
बहुत कुछ है अभी
रहस्य अपना भी खुलता है
सबक
जीवन

क्षणिकाओं में
हस्तक्षेप

संकलन में
जग का मेला- चीं चीं चूं चूं

  उम्मीद

समय ठहरता है तो जागती है उम्मीद
अँखुवाते ही ताकत उम्मीद की
काल हो जाता है रफूचक्कर।

बहुत दूर तक खुल जाते हैं रास्ते
पड़ाव हो उठते हैं दीप्त
लगता है ब्रह्माण्ड ही उतर आया हो
खुले रास्तों पर।
और मिट गया हो भेद
आदमी और देवता का।

एक आदमी निकल आता है
डग भरता
कद आकाश को भेद जाता है जिसका।

आकाश को भेदता आदमी
करता रहता है महसूस
कितने ही फूल, और सबसे खूबसूरत फूल आँसुओं के
ज़मीन से जुड़े अपने पाँवों पर।

यहीं से शुरू होती है यात्रा
जो एक राह में बदल जाती है आखिर
जुट जाते हैं जिसकी रक्षा में
तमाम नक्षत्र, ग्रह और तारे।

आकाश को भेदता आदमी
व्याप जाता है धरती में।

ताज्जुब है
लोग तब भी तलाशते रहते हैं आदतन
आदमी को आकाश में।

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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