जीवन
(एक)
कहाँ है
जीवनदायिनी वह कूची चितेरे की
श्लोकों के मौन संगीत में
देखो तो लौट रहीं टहनियाँ
हरी हरी
लौट रहा काफिला
ठूँठों का
वृक्षों की राह पर
कहाँ है
जीवनदायिनी वह कूची
जिसके रंग का चमत्कार है
यह जीवन
ठूँठों में लौटता
(दो)
वही तना
टहनियाँ वही
खड़ा भी
निकलकर
पृथ्वी से ही
पर रहा तो ठूँठ ही
वृक्ष था जो कभी।
बस रंग ही तो नहीं भरा चितेरे ने
हरा
आकृति और जीवन का
रहस्य खुल गया।
(संगीता गुप्ता की चित्र
प्रदर्शनी देखकर
संदर्भ : जीवन का दूसरा रूख़) |