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अनुभूति में दिविक रमेश की रचनाएँ-

अंजुमन में
रात में भी
आए भी तो
हाक़िम हैं

कविताओं में
उम्मीद
एक बची हुई खुशी
बहुत कुछ है अभी
रहस्य अपना भी खुलता है
सबक
जीवन

क्षणिकाओं में
हस्तक्षेप

संकलन में
जग का मेला- चीं चीं चूं चूं

  हाकिम हैं

हाकिम हैं बात का बुरा क्योंकर मनाइए
उनकी बला से मानिये या रूठ जाइए।

घर नहीं दीवानखाने आ गए हैं आप
अब उसूलन आप भी ताली बजाइए

लड़ गई आँखें मगर किस दौर में लड़ीं
है गरज जब आपकी तो खुद ही निभाइए

राह उनकी आप फिर राह पर आए क्यों
ज़ख़्मा गई आत्मा तो आप ही उठाइए

मालूम था आना ही है जब यार! इस जानिब
अपमान क्या और मान क्या अब भूल जाइए

मतलब कि पत्थरों ने ज़ख़्म आप को दिए
ख़ैर है अब भी दिविक जो लौट जाइए

 

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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