अनुभूति में
चंद्र मोहन
की रचनाएँ-
छंदमुक्त में-
अंतहीन तारों के बने फंदे
खेतों की रात
जमीन पर जमीन की कविता
यह जाने का समय है
सूरज तुम्हारा जीना देख रहा है
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जमीन पर जमीन की कविता
इस जमीन पर
लाखों लाखों बार कुदाल चलाने के बाद
मैंने जाना कि पसीने से भीगे हुए कमीज़ को
लोकतंत्र और जन गण मन अधिनायक जय हे का
तमीज सिखाना
लगभग बेईमानी है
क्योंकि
उसकी कमीज़
फटी हुई लुगड़ी है
उसकी आजादी भी
लंगड़ी है
क्योंकि वह चाहे अगर
अपनी कमीज़ से
केवल एक गिलास नहीं
केवल एक कप नहीं
कोटि-कोटि गिलास
पसीने को गार सकता है
जिस गर्म पसीने में छुपा हुआ है
समंदर का नमकीन मगर पारदर्शी पानी
जिस पानी में रहती हैं
जिंदगी के लिए जद्दोजहद करती बेचैन मछलियाँ
उन्हें भला कौन मंत्री
किस जाल में फँसा सकता है?
कि जिस पानी से बनती है
दुनिया में कविता कहानी
बनते हैं
ढेर सारे माल गोदाम
जिन पर हक
व्यवस्थाओं के नरक के हाथों में
कैसे होना चाहिए .....!
१ मई २०२३
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