अनुभूति में
एकांत श्रीवास्तव की
रचनाएँ- नई रचनाएँ-
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नहीं आने के लिए कहकर
यात्रा
विरुद्ध कथा
विस्थापन
छंदमुक्त में-
करेले बेचने आई बच्चियाँ
नमक बेचनेवाले
बिजली
रास्ता काटना
लोहा |
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विस्थापन
मैं बहुत दूर से उड़कर आया पत्ता हूँ
यहाँ की हवाओं में भटकता
यहाँ के समुद्र, पहाड़ और वृक्षों के लिए
अपरिचित, अजान, अजनबी
जैसे दूर से आती हैं समुद्री हवाएं
दूर से आते हैं प्रवासी पक्षी
सुदूर अरण्य से आती है गंध
प्राचीन पुष्प की
मैं दूर से उड़कर आया पत्ता हूँ
तपा हूँ मैं भी
प्रचंड अग्नि में देव भास्कर की
प्रचंड प्रभंजन ने चूमा है मेरा भी ललाट
जुड़ना चाहता हूँ फिर किसी टहनी से
पाना चाहता हूँ रंग वसंत का ललछौंह
नई भूमि
नई वनस्पति को
करना चाहता हूँ प्रणाम
मैं दूर से उड़कर आया पत्ता हूँ ।
२७ अप्रैल २००९ |