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अनुभूति में अम्बिका दत्त की रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
असरात
कविता की समाप्ति पर
जिंदा तो रहूँगा
डूबते हुए स्वप्न
दरवाजे पे खड़ी कविता
पेड़ के पास से गुजरते हुए

 

जिन्दा तो रहूँगा

मरने की बातें मत करो
मेरे सामने

तुमने मुझसे मेरा सब कुछ तो छीन लिया
मेरे पास घर नहीं है
रोटी नहीं है
नींद भी नहीं है
सिर्फ भूख है
और सपने हैं

पृथ्वी पर संकट है और मनुष्यता खतरे में है
ऐसी बातें ही तो मुझे डराती हैं
मेरे सामने इस तरह की बातें मत करो

मुझसे मरने की बातें क्यों करते हो
मैं तो पहले से डरा हुआ हूँ
मैं कितना और डरूँ
डरते-डरते बिल्कुल
अपनी जान के नजदीक आ गया हूँ
अपनी जीभ से अपना ही स्वाद चखता रहता हूँ
तुम चाहते हो मैं अपना सब कुछ खत्म कर दूँ

पर तुम देख लेना
मैं भूख में भले ही अपना जिस्म खा लूँ
अपनी आत्मा बचाए रखूँगा
सपनों में मैंने अपनी नींद के लिए भी
जगह रख छोड़ी है
भय में जागता रहूँगा
सब कुछ झोंक दूँगा

मैं कमजोर हूँ पर कायर नहीं हूँ
देखना
जिन्दा तो रहूँगा।

२३ सितंबर २०१३

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