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अनुभूति में अम्बिका दत्त की रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
असरात
कविता की समाप्ति पर
जिंदा तो रहूँगा
डूबते हुए स्वप्न
दरवाजे पे खड़ी कविता
पेड़ के पास से गुजरते हुए

 

पेड़ के पास से गुजरते हुए

ठहरो रुको देखो जरा
वह कुछ कह रहा है
बुला रहा है नजदीक इशारे से
होठों ही होठों में
कुछ बुदबुदा रहा है
दाढ़ी पर हाथ फिरा कर
कुछ कहना चाहता है
कह नहीं पा रहा है
सकुचा रहा है
तुम रुको!
मैं आगे चलता हूँ
तुम इसकी बात सुनकर आना
समझ सको अगर
और अगर उसने बताने से मना न किया हो
तो मुझे भी बताना।

२३ सितंबर २०१३

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