अनुभूति में
अम्बिका दत्त की रचनाएँ-
छंदमुक्त में-
असरात
कविता की समाप्ति पर
जिंदा तो रहूँगा
डूबते हुए स्वप्न
दरवाजे पे खड़ी कविता
पेड़ के पास से गुजरते हुए
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दरवाजे पे खड़ी कविता
जिनकी कविता कम थी थोड़ी
उनके छापे चित्र
शब्द पड़े जिनके कुछ ओछे
उनके गढ़े चरित्र
जिनके पास जगह ज्यादा थी
उनकी लम्बी बिछी बिसात
पग फैले जिनके कविता में
उनकी चादर की क्या बात
अपनी तो
घुटने मोड़ पड़ी है कविता
दरवाजे पे खड़ी है कविता।
२३ सितंबर २०१३ |