अनुभूति में
अम्बिका दत्त की रचनाएँ-
छंदमुक्त में-
असरात
कविता की समाप्ति पर
जिंदा तो रहूँगा
डूबते हुए स्वप्न
दरवाजे पे खड़ी कविता
पेड़ के पास से गुजरते हुए
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कविता की समाप्ति पर
कुछ लोगों ने कहा-
खत्म हो चुकी कविता
या खत्म हो जाएगी धीरे-धीरे
ये खुद बचे रहना चाहते हैं
'वो' दिन देखने के लिए
बचे रहें!
मैं तो वो दिन देख न पाऊँ शायद
जब न रहेगी कविता
वे रहेंगे और खुश होंगे
खुशी किस बात की होगी ?
कविता खत्म हो जाने की
या अपने बचे रह जाने की
अगर बची रही कविता
जल्दी खत्म न हुई
तो उन्हें बहुत दिन तक जीना पड़ेगा
अपनी बात सच होते हुए
देखने के इन्तजार में
क्या फर्क पड़ता है
अपनी तो लम्बी उम्र की दुआ करें
उनके लिए भी कविता के लिए भी
२३ सितंबर २०१३ |