शहर के बीच
शहर के बीचोबीच
जो एक बड़ा-सा फ़व्वारा है
जिसके इर्द-गिर्द
खूबसूरत बाग़ीचा है
वहाँ-वहाँ बिछी हैं
आरामदेह बेंचें. . .
आराम भी करो
नज़ारा भी देखो-
संगीत की लय पर
आर्केस्ट्रा के संग
उछलती-कूदती रंगीन रोशनियाँ
शीतल जल की फुहारें. . .
इंद्रजाल में
सबके सब मुग्ध-मोहित से फँसे थे. . .
तभी सरपत के वन में
पिंडली तक लथ-पथ कीचड़ से
कास के फूल चुनता
एक नन्हा शैतान
खिलखिलाता नज़र आया।
9 सितंबर 2007 |