अनुभूति में
अजामिल
की रचनाएँ—
छंदमुक्त में-
अबोला
क्या तुम्हें मेरी याद नहीं आती
चुगली करता है चेहरा
रिश्ते
शब्द शब्द सच
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क्या तुम्हें
मेरी याद नहीं आती?
मै बुरी, बहुत बुरी सही
बच्चों के लिए तो तुम
मेरे पास रह सकते थे हमेशा...
जिस घर के कोने-कोने में
तुम्हारी खुशबू बसी हो
जहाँ हम बेबात लड़े-झगड़े हों
अबोला किये रहे हों कई-कई दिन तक
जहाँ हम उस सच को खोजते रहे
जो सच नहीं था
वहाँ तुम्हारे क़दमों की आहट सुनाई देती है
तुम्हारी चिड़िया
बहुत मीठा बोलती है
कमरे में चहकता है तुम्हारा क्लोन
बहुत मिस करते हैं तुम्हें
कोई कभी कहीं नहीं जाता
सब रहते हैं एक दुसरे के दिलों में
दुश्मन बनकर ही सही...
मैंने खिड़की-दरवाजे खोल दिए हैं
तुम कब आओगे
रौशनी बनकर...
सच बताना क्या तुम्हें
सचमुच मेरी याद नहीं आती?
४ मई २०१५
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