अनुभूति में अभिषेक
झा की रचनाएँ—
छंदमुक्त में—
चेहरे का सच
ठंड की ओट में
रौशनी के
उस पार
यादों की
परछाइयाँ
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ठंड की ओट में
बैठे हुए खाली हाथ,
खाली प्लास्टिक की कुर्सी पर,
ठंडी हवा के झोकों से लड़ते हुए,
अन्दर के खालीपन को भरते हैं
सड़क के उस पार,
बैठे हुए हाथों के जोड़े,
कूड़े की आग की तपन में,
तन मन में गर्मी भरते हैं
दूर किसी फुटपाथ पर,
सरकारी आग के बुझने के बाद,
बोरे में लिपटे कुछ कंकाल,
सुबह की धूप की आस में आँख बंद करते हैं
दूर किसी शहर में,
बर्फ से महीनो तक खेलने के बाद,
स्थूलता से झल्लाए हुए जीव,
अपनों की गर्माहट में बैठे बदलाव का इंतज़ार करते हैं
दूर किसी देश की सीमा पर
काँपते हुए कुछ हाथ
बन्दूक की नाली में जमे बर्फ के समान
अपने अस्तितिव और भविष्य पर चिंतन करते हैं
२७ दिसंबर २०१०
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