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अनुभूति में अभिषेक झा की रचनाएँ—

छंदमुक्त में—
चेहरे का सच
ठंड की ओट में

रौशनी के उस पार
यादों की परछाइयाँ

 

रौशनी के उस पार

रौशनी के उस पार खड़े हैं हम
अँधेरी रात में-
थोड़ी सी रौशनी सड़क पर
कूड़ेदान के पीछे
स्ट्रीट लैंप से दूर
फटे बोरे के बने
बिस्तर पर
पाप बताये जाने वाले
हर शब्द पर
नरक सामान
हर गली पर
शोर में बसे सन्नाटे की
सीमा पर
चीखती वासनाओं के
हर शब्द पर
नशे में डूबी जिन्दा
लाशों पर
टूटकर ढह जाने वाली
उस छत पर
कोलाहल के बिना उठे
हाहाकार पर
अन्दर बसे काले रक्त पर
भागती,
दौड़ती,
और दूर भागती

२७ दिसंबर २०१०

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