अनुभूति में अभिषेक
झा की रचनाएँ—
छंदमुक्त में—
चेहरे का सच
ठंड की ओट में
रौशनी के
उस पार
यादों की
परछाइयाँ
|
|
चेहरे का सच
लाल पत्तों के झुरमुट में
हरे रंग का सुन्दर फूल
चेहरे पहनकर ललचाता
अंकों को गलत चश्मा पहनाता
फिर इठलाता, मुस्कुराता
जब उससे
कुछ पाने की लालसा जागती
तो जीभ चिढ़ा, ठेंगा दिखा जाता
ऐसे कई फूलों के
दिए गम को निकलने के लिए
जब मैं आईने के सामने बैठा जाता
तो चेहरे के रंग झड़ने लगते
अगर चाह होती,
तो असली रंग भी दिख जाता
फिर फूलों की बात तो छोडिये
रंगों से भरोसा उठ जाता
२७ दिसंबर २०१०
|