तुम्हारी आँखों
के बादलों में...
तुम्हारी आँखों में मेरी आँखों
का एक घरौंदा है,
इस घरौंदे में न कोई देहरी है, न कोई दीवार है।
बस प्यार की पीठ पर बैठी एक धरती है
और एक आसमान है,
जो प्यार ही के पंखों पर सवार है।
तुम्हारी आँखों के काजल में
मेरी सपनों-सी उड़ती हुई रातों का रंग,
मेरी दरिया-सी बहती हुई रातों की गहराई है।
हर रोज़ जो शाम के पहाड़ से उतार लाती है चाँदनी
और सुबह-सुबह किरणों की करती बुआई है।
तुम्हारी आँखों की पुतलियों में
मेरी उजली-उजली परियाँ नाचती हैं
मेरी हवा, मेरी पत्तियाँ सुर-ताल देती हैं।
तुम्हारी पिपनियों पर आकर ठहर जाता है
ओस की बूँदों जैसा कुछ
और मेरी हर दूब हथेलियाँ खोलकर
उन्हें सँभाल लेती है।
तुम्हारी आँखों के बादलों में
मेरी निर्मल नदियों का पानी है।
नीचे की धरती धानी है
और ऊपर का आसमान आसमानी है।
तुम्हारी आँखों के गीले कोरों में
मेरी ही आँखों की नमी है।
जब तक तुम्हारी आँखों में मेरी आँखें हैं,
ये मेरी साँस क्यों
थमी की थमी है?
तुम्हारी आँखों के नीले अंबर
में
मेरी चिड़िया चहचहाती है
जैसे तन-बदन पर पहली-पहली बार
पहला-पहला पर निकला हो।
ख़ुद तुम्हारी अपनी आँखों के चूजे भी
कुछ कम नहीं बोलते
कंठ से जैसे पहली-पहली बार
पहला-पहला स्वर निकला हो।
तुम्हारी आँखों में अपने पंख
फरफराती हैं तितलियाँ
हिरणियों के बच्चे उछल-उछल खेलते हैं,
लंगूरों के बच्चे झूलते
हैं झूला।
तुम्हारी आँखों में जाना
क्या जीवन के भी पार जाने जैसा है?
आखिर मैं क्यों सब कुछ अपना इन्हीं में आ भूला?
तुम्हारी गुलाबी पलकों से हमारी
सेज के फूल झरते हैं
तुम्हारी निगाहें बिछाती हैं बिछौना।
मुझे बस सपनों की एक नींद दे दो
जो चाहे कभी टूटे या टूटे ना!
२८ सितंबर २००९
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