अनुभूति में अभिरंजन
कुमार की रचनाएँ—
नई रचनाओं में—
तुम्हारी आँखों के बादलों में
बातें तुम्हारी
प्रिये...
मैं अनोखा हो गया हूँ
हाइकु में—
जाड़े का हाइकु¸ प्रियतमा के लिए¸ महानगर के
हाइकु¸ गाँव के हाइकु¸ संदेश
कविताओं में—
चालू आरे नंगा नाच
भस्मासुर जा रहा
हँसो गीतिक हँसो
होली बीती
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मैं अनोखा हो
गया हूँ
मैं अनोखा हो गया हूँ!
चार पद, कर चार, दो तन, दो वदन
वाला हुआ
धड़कनें दो फूल- गूँथा एक में- माला हुआ
होंठ मेरे ही नशीले हैं शपथ जिनके लिए
स्वयं साक़ी, स्वयं प्याला, स्वयं मृदु हाला हुआ
विश्व के लोचन तुम्हें मैं आज धोखा हो गया हूँ!
ताड़-तरु तर झील के कूलों झितिज
पर जा गिरूँ
या जलद में नील नभ में, सित दुकूलों पर तिरूँ
लड़खड़ाते शिथिल क़दमों नपें हिममय घाटियाँ
भावनाएँ मैं रुई-सी मौन हो उड़ता फिरूँ
पूछ देती माँ हिला कर- जग रहा या सो गया हूँ!
पेड़-बादल छाँह-अमृत पवन
पुलकन याचते
विहग मुझसे गीत माँगें, नदी निज पथ के पते
आज मेरी ये भुजाएँ अमित को फैली हुईं
फूल-काँटे, बर्फ़-शोले एकसम हो बाँचते
झाँक मुझमें देख जन्नत का झरोखा हो गया हूँ!
मैं अनोखा हो गया हूँ!
२८ सितंबर २००९
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