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अनुभूति में ठाकुरदास सिद्ध की रचनाएँ-

नयी रचनों में-
कहीं वो गजल तो नहीं
पा गया बंदूक
हर मरहले का
हर सितम पर मौन रहते

अंजुमन में-
ढह रहे हैं घर हमारे
बात ठहरे तो
मुस्कुराकर ले गया
स्वारथ के दलदल में

 

मुस्कुराकर ले गया

वह सुकून-ए-ज़िन्दगी को मुस्कुरा कर ले गया।
हक़ हुकूमत का हमें सपने दिखा कर ले गया।

इस कदर छाया था नफरत का जुनूँ चारों तरफ
ज़ोर का तूफ़ान आया, छत उड़ा कर ले गया।

कोठरी काजल की थी, हर शख्स जिसमें दाग़ दार।
वह बड़ा फनकार था, ख़ुद को बचा कर ले गया।

हैं कई जो आँख का काजल चुराते हैं यहाँ।
वह हमारी आँख के, सपने चुरा कर ले गया।

वह समझता है कि मैंने कुछ नहीं देखा यहाँ।
कौन आया साथ अपने, क्या छुपा कर ले गया।

'सिद्ध' को मालूम है, उस शख़्स का क्या नाम है।
बीच महफ़िल से हमारा, दिल उठा कर ले गया।

१ अप्रैल २०१६

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