अनुभूति में
ठाकुरदास सिद्ध की रचनाएँ-
नयी रचनों में-
कहीं वो गजल तो नहीं
पा गया बंदूक
हर मरहले का
हर सितम पर मौन रहते
अंजुमन में-
ढह रहे हैं घर हमारे
बात ठहरे तो
मुस्कुराकर ले गया
स्वारथ के दलदल में
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ढह रहे हैं घर
हमारे
ढह रहे हैं घर हमारे, देखिए।
आप हँसकर ये नज़ारे, देखिए।
भूख से बालक बिलखता रो रहा।
माँ दिखाती चाँद-तारे, देखिए।
आँधियाँ सागर में हों, क्या वास्ता।
झील में उतरे शिकारे, देखिए।
लोग हैं फुटपाथ पर, लेटे हुए।
जी रहे हैं बेसहारे, देखिए।
वो लबों पर पोतता अपना लहू।
रूप अपना यों निखारे, देखिए।
वो मनाते फिर रहे रंगरेलियाँ।
ख़्वाब अपने हैं कँवारे, देखिए।
यार सा वह पेश आता है मगर।
पीठ पर ख़ंजर न मारे, देखिए।
हो रहे उत्पात के, पीछे का सच।
कर रहे हैं वो इशारे, देखिए।
जो सियासत में गए जय-जय हुई।
लग रहे हैं आज नारे, देखिए।
टूटते हैं ख़्वाब उसकी, आँख के।
आदमी हिम्मत न हारे, देखिए।
ताक में शैतान बैठा आज जो।
'सिद्ध' वह हमको निहारे, देखिए।
१ अप्रैल २०१६
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