अनुभूति में
ठाकुरदास सिद्ध की रचनाएँ-
नयी रचनों में-
कहीं वो गजल तो नहीं
पा गया बंदूक
हर मरहले का
हर सितम पर मौन रहते
अंजुमन में-
ढह रहे हैं घर हमारे
बात ठहरे तो
मुस्कुराकर ले गया
स्वारथ के दलदल में
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कहीं वो ग़ज़ल तो
नहीं
ज़माना सरल तो नहीं
परोसा गरल तो नहीं
अँधेरे में रोशन दिखा
किसी का महल तो नहीं
भटकता फिरे है कोई
हुआ बेदख़ल तो नहीं
मिली है हुकूमत उसे
दुखी आज-कल तो नहीं
मेरे जख़्म के रंग सी
खड़ी है फसल तो नहीं
कहें क्या मुलाकात हम
मिला एक पल तो नहीं
नहीं दीखता आज-कल
गया वो निकल तो नहीं
कही 'सिद्ध' ने जो अभी
कहीं वो ग़ज़ल तो नहीं
१५ सितंबर २०१६
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