अनुभूति में
सुलभ अग्निहोत्री की रचनाएँ-
अंजुमन में-
उसकी झरने सी हँसी
कुछ ऐसे सिलसिले हैं
पिघलते मत
मत वृथा व्यय कर इन्हें
हवा जब जोर की चलती है |
' |
कुछ ऐसे सिलसिले
हैं
कुछ ऐसे सिलसिले हैं जो हमेशा
साथ चलते हैं
कुछ ऐसे फासले हैं जोकि यादों में ठहरते हैं
छुपे कुछ राज होते हैं हरिक पैगाम में उसके
कभी हम जान लेते हैं, कभी अनजान रहते हैं
सँदेशे दिल के आते हैं, हमेशा आँख के रस्ते
कभी गालों को तर करते, कभी नूपुर से बजते हैं
वो मेरे साथ ज्यादा रास्ता तय कर नहीं पाये
पर उतनी राह पर अब भी हजारों फूल खिलते हैं
उन्हें जब याद करते हैं तो कोई गीत होता है
ग़ज़ल होती है जब कोई, उन्हें हम याद करते हैं
वो साँकल पे तेरी थपकी, बजी ज्यों श्याम की वंशी
हमारे कान सुनने को वही धुन फिर तरसते हैं
३ अगस्त २०१५ |