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अनुभूति में सोनरूपा विशाल की रचनाएँ-

अंजुमन में-
अपनी ये पहचान
ज़रूरी है
पिता
माँ
सुब्ह फूलों से रात तारों से



 

'

जरूरी है

मेरे जज़्बात को स्याही का रँग मिलना ज़रूरी है
मुझे रहना हो गर ज़िंदा, तो फिर लिखना ज़रूरी है

फकत अशआर लिखने से गिले शिकवे न कम होंगे
इन्हें दिल से मिटाने को, कभी मिलना ज़रूरी है

न होगा इस तरह कीमत का अंदाज़ा तुम्हें अपनी
किसी दिन बैठ के बाज़ार में बिकना ज़रूरी है

मेरी मसरूफियत में साथ देता है भले सूरज
तलब में चाँद के भी जागते रहना ज़रूरी है

पिता मेरे समंदर थे, ग़ज़ल और गीत के, बेशक
तो थोड़ा इल्म उनका भी, मुझे मिलना ज़रूरी है

१५ जुलाई २०१६

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