अनुभूति में
सोनरूपा विशाल
की रचनाएँ-
अंजुमन में-
अपनी ये पहचान
ज़रूरी है
पिता
माँ
सुब्ह फूलों से रात तारों से
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' |
पिता
जीवन से लबरेज, हिमालय जैसे थे पुरजोर पिता
मैं उनसे जन्मी नदिया हूँ, मेरे दोनों छोर पिता
प्रश्नों के हल, खुशियों के पल, सारे घर का सम्बल थे
हर रिश्ते को बाँधने वाली, थे इक अनुपम डोर पिता
जीवन के सब तौर तरीके, जीवन की हर सच्चाई
सिखलाया करते थे हम पर, रखकर अपना जोर पिता
जब हम बच्चों की नादानी, माँ से सँभल न पाती थी
तब हम पर गरजे बरसे थे, बादल से घनघोर पिता
सब कुछ है जीवन में लेकिन, एक तुम्हारे जाने से
रात सरीखी ही लगती है, मुझको अब हर भोर पिता
रोज कई किरदार जिया करते थे पूरी शिद्दत से
कभी झील की ख़ामोशी थे, कभी सिंधु का शोर पिता
दिल अम्बर सा, मन सागर सा, कद काठी थी बरगद सी
चाँद से शीतल, तप्त सूर्य थे, ईश्वर से चितचोर पिता
१५ जुलाई २०१६ |