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अनुभूति में सोनरूपा विशाल की रचनाएँ-

अंजुमन में-
अपनी ये पहचान
ज़रूरी है
पिता
माँ
सुब्ह फूलों से रात तारों से

 

'

माँ

शाम सी नम, रातों सी भीनी, भोर सी है उजियारी माँ
मुझमें बस थोड़ी सी मैं हूँ, मुझमें बाकी सारी माँ

जब मुश्किल हालात के अंगारों से हमको आँच मिली
बारिश सी शीतलता हमको, देती रही हमारी माँ

कैसे भी खर्चे हों उनको, वो पूरा कर देती है
रखती है मासूम से मन में, बनिए सी हुशियारी माँ

कितनी बार उसे देखा था, मैंने ऐसे रूप में भी
होंठों पर मुस्कान लिए है, आँखों में लाचारी माँ

माँ की सूरत और सीरत का ज़िक्र करूँ तब ये बोलूँ
फूल सा चेहरा, कोकिल वाणी, पूजा की अज्ञारी माँ

१५ जुलाई २०१६

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