चाहता मन
अच्छा नहीं लगता
यूँ ही तुम्हारा हँसते हँसते
उदास हो जाना
चाहता मन
एक लक्ष्मण रेखा खींच दूँ
तुम्हारी हँसी के चारों ओर
जहाँ से
की उदासी
कोई पीड़ा
प्रवेश न कर सके।
लेकिन क्या करूँ
सामर्थ्य नहीं इतनी हाथों में
न तप का तेज है
मेरा मन
उस पंख कटे पंछी सा
जो कल्पना में उड़ानें भरता
कुछ नहीं कर सकता
बस चाहता मन
तुम रहो मुस्कुराते
अच्छा नहीं लगता इसे
यों ही तुम्हारा हँसते हँसते
उदास हो जाना।
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