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अनुभूति में शशि जोशी की रचनाएँ 

अंजुमन में--
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मुझे टूटन
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मुझे टूटन

मुझे टूटन, उदासी, हर घुटन से खींच लाती है,
दुआ ये किसकी मेरे सर पे साया बनके आती है।

कभी काँटों-सी चुभती है, कभी फूलों-सी खिलती है,
हमारी ज़िंदगी कितने अजब मंज़र दिखाती है।

बहुत ख़ामोश-सी रहती है लड़की भीड़ में अक्सर,
मगर तनहाइयों में मुसकुराती, गुनगुनाती है।

उसे कब धूप की या छाँव की परवाह रहती है,
हवा तो अपनी धुन में मुसकुराती बहती जाती है।

महकने लग गए हैं ख़्वाब मेरे, उसकी आँखों में,
मुहब्बत की ये खुशबू धीरे-धीरे रंग लाती है।

३ मार्च २००८

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