बँटवारे की पीड़ा सहती, ये बेचारी
दीवारें।
किसको अपना दर्द बताएँ, वक़्त की मारी दीवारें।
छोड़ के अपना गाँव, शहर तुम
निकले थे जब खुशी-खुशी,
उस दिन फूट-फूट के रोई, घर की सारी दीवारें।
एक खंडहर की सूरत में, वीराने
में पड़े-पड़े,
किसका रास्ता तकती हैं, ये टूटी-हारी दीवारें।
देख रही हैं गुमसुम होकर,
हिस्सा बाँट ज़मीनों का,
बेबस बूढ़ी माँ के जैसी, हैं दुखियारी दीवारें।
छत का बोझ नहीं है सर पे, हैं
बेहद आज़ाद अभी,
इसीलिए कुछ इतराती हैं अभी कुँवारी दीवारें।
परदेशी बेटा लौटा है, सारा घर
है खिला-खिला,
चहक उठी हैं माँ के संग में, प्यारी-प्यारी दीवारें।
३ मार्च २००८