अनुभूति में
डॉ. सुश्री शरद सिंह की रचनाएँ-
गीतों में-
आखिर क्यों
कहना और क्या है
जाड़े की है धूप उदासी
तिनकों के
ढेर में
रेत देती है
गवाही
अंजुमन में-
एक लड़की चार गजलें
संकलन में-
अमलतास-
अमलसात खिलने दो
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रेत देती है गवाही
रेत देती है
गवाही
उस नदी की
गर्मियों के पूर्व जो बहती यहाँ थी
चाँद भी
अब दूर बेहद दूर दिखता
ताप से हर रात का अब याम सिंकता
लोग कहते हैं कहानी की तरह अब
एक शीतलता सदा
रहती यहाँ थी
भोर आकुल
हुई झुलसी हुई है
काल कवलित सूखकर तुलसी हुई है
दीप की बाती निरखती शोक हरती
आस्था की बाँह जो
गहती यहाँ थी
कल करेगा
कौन बातें आज की
कौन जानेगा कथा छाँह के अवसाद की
एक बारिश बाद किसको याद होगा
यह धरा भी सूर्य को
सहती यहाँ थी
१३ फरवरी २०१२
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