एक लड़की चार
ग़ज़लें
मेरी आँखों से
मेरी आँखों से ये किसके आँसू बहते रहते हैं
बेहद अपनी-अपनी-सी वे एक कहानी कहते हैं।
उसका दिल था तितली जैसा, उसकी आँखें थीं हिरनी
उस चंचल लड़की के सपने अकसर आते रहते हैं।
वह बिंदास हवा का झोंका, उसने खुलकर प्यार किया
उसकी जैसी चाहत वाले दुनिया का ग़म सहते हैं।
जिस दिन से वो रूठी मुझसे, मैंने शीशा तोड़ दिया
मैं ही थी वो, कहने वाले मुझसे कहते रहते हैं।
समय गुज़रते किसने देखा, देखा है बस, परिवर्तन
साथ समय के मौसम भी तो सदा बदलते रहते हैं।
दो
मेरे दिल में रहती थी जो, कहाँ गुमी है वो लड़की
जीवन में धुंधलापन छाया, धुआँ हुई है वो लड़की।
उसके हाथों की रेखाएँ सपने बुनती रहती थीं
सबने समझा क़िस्मत की तो बहुत धनी है वो लड़की।
उसके कंगन, उसके झुमके, ढाई आखर पर बजते
सब कहते थे - सात सुरों में ढली हुई है वो लड़की।
दुनिया भर की चिंताओं से सदा बेख़बर रहती थी
लगता है उन चिंताओं से त्रस्त हुई है वो लड़की।
खुद के भीतर खूब तलाशा, मुझे कहीं भी मिली नहीं
कहते हैं सब – मेरे भीतर छुपी हुई है वो लड़की।
तीन
होंठों पर हँसती दिखती है, पलकों में रोती लड़की
सपनों की झालर बुनती है, तनिक बड़ी होती लड़की।
गुड्डे-गुड़िया, खेल-खिलौने, पल में ओझल हो जाते
अपने छोटे भाई-बहन को बाँहों में ढोती लड़की।
चूल्हा, चौका, कपड़े, बरतन, बचपन से ही जुड़ जाते
परिपाटी की बंद सीप में, क़ैद हुई मोती-लड़की।
इसकी पत्नी, उसकी बेटी, जाने क्या-क्या कहलाती
नाते-रिश्ते, संबोधन में खुद को है खोती लड़की।
दिन का सूरज, रात के तारे या सपनों का शहज़ादा
सारी दुनिया पा लेती है, नींद भरी सोती लड़की।
चार
चूल्हे के आगे बैठी है, धुआँ-धुआँ-सी जो लड़की
उसकी भीगी आँखें कहतीं- फिर सपनों को बो लड़की।
मुट्ठी भर आगे आती हैं, बाकी का तो पता नहीं
अगर ताब न हो तुझमें तो, तू भी जाकर खो लड़की।
सब के भीतर है इक ज्वाला, सबके भीतर है इक आग
अपने को पहचानो तुम भी, अपनी चाह कहो लड़की।
बस्ता, कॉपी और किताबों से नाता-रिश्ता कर लो
वरना दबी, छुपी-सी रह कर, दोयम बनी रहो लड़की।
उसका नन्हा दिल कहता है, उसके कानों में अकसर
चाहे जो भी मुश्किल आए, रुकना नहीं, सुनो लड़की।
१४ जनवरी २००८