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अनुभूति में शादाब जफर शादाब की रचनाएँ-

अंजुमन में-
अचानक वो फिर
ऐसे कपड़ों का
कहूँगा रात को
किस के दम से रोशनी है
ज़ुबाँ पर हर किसी के

'

ज़ुबाँ पर हर किसी के

ज़ुबाँ पर हर किसी के सामने लाया नहीं जाता
यूँ अपना हाल-ए-दिल सब को तो बतलाया नहीं जाता

कहीं भी हो तुझे चश्म-ए-तसव्वुर ढूँढ लेती है
न हो जब तक वजू हागिज तुझे सोचा नहीं जाता

बुरी है मयकशी जिस दिन से मैंने तोबा करली है
तेरी आँखों में मुझसे जाने क्यों देखा नहीं जाता

जवानी की हसीं रंगीनियों में मुझ को खोने दो
ये वो मंजिल है जिस पे लौट कर आया नहीं जाता

घड़ी भर के लिये इक रोज फिर से सामने आजा
दिल-ए-मुज्तर तसल्ली दे के बहलाया नहीं जाता

फरेब-ए-इश्क वो मासूम चेहरा दे गया "शादाब"
किसी से जानकर धोखा कभी खाया नहीं जाता।

२१ अक्तूबर २०१३

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