अनुभूति में
शादाब जफर शादाब की रचनाएँ-
अंजुमन में-
अचानक वो फिर
ऐसे कपड़ों का
कहूँगा रात को
किस के दम से रोशनी है
ज़ुबा पर हर किसी के |
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अचानक वो फिर
अचानक वो फिर याद आने लगे हैं
जिन्हे भूलने में जमाने लगे हैं
कई दिन से अक्सर मुझे ख्वाब में वो
कसम देके फिर से मनाने लगे हैं
लगातार हफ्तों से हिचकी लगी
वो ऐसे भी मुझ को सताने लगे हैं
मुझे देखकर राह में आते जाते
वो खिडकी से कंगन बजाने लगे हैं
न था नाम सुनना भी जिन को गवारा
गजल मेरी वो गुनगुनाने लगे हैं
बहुत दर्द जिन को सहा भूलने में
वो फिर प्यार दिल में जगाने लगे हैं
मौहब्बत है 'शादाब' उनके भी दिल में
वो फिर देखकर मुस्कुराने लगे हैं
२१ अक्तूबर २०१३ |