अनुभूति में
शादाब जफर शादाब की रचनाएँ-
अंजुमन में-
अचानक वो फिर
ऐसे कपड़ों का
कहूँगा रात को
किस के दम से रोशनी है
ज़ुबा पर हर किसी के |
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कहूँगा रात को
कहूँगा रात को सुबहा गजल सूना दूँगा
मैं दिल का हाल उसे इस तरहा बता दूँगा
सुकून दिन को मिलेगा ना रात में उस को
मैं दिल चुराने की ऐसी उसे सजा दूँगा
मिसाल देगा जमाना मेरी मोहब्बत की
मैं अपने प्यार को वो मर्तबा दिला दूँगा
नजर बचा के जमाने से तुम चली आना
मैं कर के याद तुम्हें हिचकियाँ दिला दूँगा
वो मेरे सामने आयेगी जब दुल्हन बनकर
नजर का टीका उसे चूम कर लगा दूँगा
वो मुझ को देख के "शादाब" मुस्कुरा देंगे
मै उस को देख के एक कहकहा लगा दूँगा
२१ अक्तूबर २०१३ |