ज़ख्म बदन पर
ज़ख्म बदन पर खाते हैं, फिर ज़ख्म
भराई देते हैं।
हमको तो मजबूर हमेशा लोग दिखाई देते हैं।।
अपने मफ़ादों की खातिर ये देश
को गिरवी रख देंगे।
कैसे-कैसे जुम्ले हमको अब तो सुनाई देते हैं।।
दुनिया का दस्तूर निराला मुँह
पर कुछ और पीछे कुछ।
कितना भी अच्छा कर जाओ लोग बुराई देते हैं।।
कर्ज़ नहीं रखते हैं सर पर चाहे
कुछ भी हो जाए।
अपनी आन बचाने वाले पाई-पाई देते हैं।।
जितने दिन की कैद मिली थी उतने
दिन हम काट चुके।
किससे पूछें, क्यों वो हमको अब न रिहाई देते हैं।।
नफ़रत की विष-बेल सभी के जहनों
में फल-फूल रही।
क्या होगा दुनिया का इस पर लोग दुहाई देते हैं।।
जिनके दिल में चोर वही तो लोगों
के आगे 'सर्वेश'।
बिन माँगे अपनी जानिब से खूब स़फाई देते हैं।।
२२ दिसंबर २००८ |