ग़म के पैहम
ग़म के पैहम बारिशों से हर ख़ुशी
ख़तरे में है।
सच तो ये है आदमी की ज़िन्दगी ख़तरे में है।।
धूप की शिद्दत से डर कर बोला,
कुहरे से धुआँ।
ऐ मेरे भाई! अब अपनी दोस्ती ख़तरे में है।।
शहर की सड़कों को चौड़ी और करने
के सबब।
मेरे पुरखों की बनाई झोंपड़ी ख़तरे में है।।
घर के घर जिसने उजाड़े, खेतियाँ
बर्बाद कीं।
कहर बरपा करने वाली वो नदी ख़तरे में है।।
देख कर गुड़िया मिरी बच्ची की
आँखों में चमक।
पैदा करने वाले मेरी मु़फलिसी ख़तरे में है।।
झूठ के कजजाक हर इक गाम पर
मौजूद हैं।।
साथियों! सच्चाइयों की पालकी ख़तरे में है।।
अहदे-हाजिर पर करूँगा तब्सिरा
बेलौस मैं।
जिसमें ऐ 'सर्वेश' सच्ची शायरी ख़तरे में है।।
२२ दिसंबर २००८ |