अनुभूति में
मेजर संजय
चतुर्वेदी-अंजू चतुर्वेदी की रचनाएँ-
अंजुमन में-
आइना
जब से मैं
दादा-दादी
दिल जला फसलें जलीं
मेले में
सड़क
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मेले में
कुछ बैलों पर कुछ गाड़ी में बाकी पैदल मेले में
हर कोने में शोर मचा है रूक रूक चल चल मेले में
रील पुरानी कैसिट वाली चिमटे हैन्डल में बाँधे
दुल्हन जैसी सजकर आयी बूढ़ी सैकल मेले में
झगड़ा घर में आज हुआ है मेला जाने को लेकर
सब कुछ धुलता जायेगा जब होगी हलचल मेले में
भाभी को जब उल्टी आयी ऊँचे ऊँचे झूलों पर
अम्मा ख़ुशखबरी की सोचें भैया बेकल मेले में
औरों की खुशियों में शामिल होकर खुश हैं लोग सभी
जोगन काकी बेच रहीं हैं सेन्दुर काजल मेले में
हर क़ुनबे की रेल बनी है मुखिया के पीछे पीछे
बूढ़े गमछा लाठी थामे बच्चे आँचल मेले में
काली कमली वाले का जस दूबे काका बाँच रहे
जुम्मन चाचा बेच रहे हैं चुनरी नरियल मेले में
खोटा सिक्का देकर मैं खुश सूर भिखारी भी है खुश
बान्धे कुछ कर्जे के पैसे ख़ुश है आँचल मेले में
२३ मार्च २००९
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