अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में मेजर संजय चतुर्वेदी-अंजू चतुर्वेदी की रचनाएँ-

अंजुमन में-
आइना
जब से मैं
दादा-दादी
दिल जला फसलें जलीं
मेले में
सड़क
 

 

दादा-दादी

घर के चौकीदार हुए दादा दादी
सबके पहरेदार हुए दादा दादी

बीमे की फ़सलें पककर तैयार हुईं
मरने को तैयार हुए दादा दादी

कौन ख़रीदे नहीं रहे पढ़ने वाले
उर्दू के अख़बार हुए दादा दादी

उनके ही गहने बेचे उनकी लाठी
अगर कभी बीमार हुए दादा दादी

कौन उन्हें पहचाने समझे कौन उन्हें
खुद अपना परिवार हुए दादा दादी

घर में सारे सुख लाये बेटे पोते
दुख के ज़िम्मेदार हुए दादा दादी

जज़्बातों का खेल कहें या मजबूरी
हर बच्चे की कार हुए दादा दादी

घर में उनका नहीं रहा हिस्सा कोई
कपड़ों वाला तार हुए दादा दादी

२३ मार्च २००९

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter