अनुभूति में
मेजर संजय
चतुर्वेदी-अंजू चतुर्वेदी की रचनाएँ-
अंजुमन में-
आइना
जब से मैं
दादा-दादी
दिल जला फसलें जलीं
मेले में
सड़क
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दादा-दादी
घर के चौकीदार हुए दादा दादी
सबके पहरेदार हुए दादा दादी
बीमे की फ़सलें पककर तैयार हुईं
मरने को तैयार हुए दादा दादी
कौन ख़रीदे नहीं रहे पढ़ने वाले
उर्दू के अख़बार हुए दादा दादी
उनके ही गहने बेचे उनकी लाठी
अगर कभी बीमार हुए दादा दादी
कौन उन्हें पहचाने समझे कौन उन्हें
खुद अपना परिवार हुए दादा दादी
घर में सारे सुख लाये बेटे पोते
दुख के ज़िम्मेदार हुए दादा दादी
जज़्बातों का खेल कहें या मजबूरी
हर बच्चे की कार हुए दादा दादी
घर में उनका नहीं रहा हिस्सा कोई
कपड़ों वाला तार हुए दादा दादी
२३ मार्च २००९
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