अनुभूति में
राम
बाबू रस्तोगी
की रचनाएँ-
अंजुमन में-
कभी जंगल कभी दरिया
जैसा मौसम वैसे मंजर
बहुत से मसअले
समंदर पर बरसता है |
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कभी जंगल कभी दरिया
कभी जंगल, कभी दरिया, कभी सहरा लिख दे
मुझसे खुश है तो मुझे सिर्फ परिंदा लिख दे।
धूप दीवार से उतरी तो कहाँ तक पहुँची
कैसा गुजरा ये सफर मुझको ये किस्सा लिख दे।
हैं पशोपेश में अर्जुन कि सभी अपने हैं
तीर तो तीर है क्या जाने कहाँ क्या लिख दे।
उसकी मर्जी है कहां किसको बिठाये लाकर
किसको वो तख्त लिखे किसको तपस्या लिख दे।
राजदरबार के शायर को ये हक़ मिलता है
भोर को रात लिखे दिन को अँधेरा लिख दे।
४ मार्च २०१३ |