अनुभूति में
राम
बाबू रस्तोगी
की रचनाएँ-
अंजुमन में-
कभी जंगल कभी दरिया
जैसा मौसम वैसे मंजर
बहुत से मसअले
समंदर पर बरसता है |
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बहुत से मसअले
बहुत से मसअले कुछ इस तरह सुलझाए जाते हैं
कि अक्सर भीष्म के सम्मुख शिखंडी लाए जाते हैं।
हमें मालूम है वो बेवफा है, झूठ बोलेगा
मगर हम चाहने वाले हैं, धोखे खाए जाते हैं।
किसी की सरबुलंदी आँधियाँ कब देख पाती हैं
जो सच कहते हैं वो दीवार में चिनवाए जाते हैं।
मियाँ ! हम फूल हैं हमको सियासतदान मत कहना
हमारा कौल है, हम खुशबुएं फैलाए जाते हैं।
हम उनसे कह रहे हैं आओ बैठो हल निकालेंगे
मगर वो बात धागों की तरह उलझाए जाते हैं।
४ मार्च २०१३ |