सारी गलियाँ सूनी
सारी गलियाँ सूनी-सूनी, हर
बस्ती वीरान लगी
अब तो हर पहचानी सूरत भी मुझको अनजान लगी
क्या बतलाएँ जब भी बादल आँसू
बनकर बरसे हैं
उनकी रिमझिम भी सागर को एक नया तूफ़ान लगी
जब भी कोई रस की प्याली रस
छलकाकर टूट गई
मुझको जाने क्यों वह तेरा टूटा-सा अरमान लगी
पहले तो हर मुश्किल मुझ पर
पत्थर बनकर गिरती थी
जब से तुम हो साथ हमारे हर मुश्किल आसान लगी
तुझसे अपनी कहकर अपना जी हल्का
कर लेते हैं
पर तेरी हर पीड़ा मुझको जीवन का अवसान लगी
रात दुल्हन-सी सजी तो मन को
मेरे भा गई
दिल की धड़कन सो रही थी जागकर शरमा गई
एक सूनापन था मेरे मन के कमरे
में अभी
याद तेरे प्यार की कुछ चू्ड़ियाँ खनक गई।
हमने सोने की अभी तैयारियाँ भी
न की थीं
भोर भी बीती न थी और शाम सम्मुख आ गई
मुझ पे कुछ काग़ज़ के टुकड़े और
दो-एक शब्द थे
तेरी नज़रों की छुअन छूकर उन्हें महका गई
इस कदर गर्मी मिली सागर को सूरज
से कि फिर
एक बदली-सी उठी पूरे गगन पर छा गई
कितनी मुश्किल से बचाया था
'रमा' आँसू का जल
नैन की गागर को तेरी याद फिर छलका गई
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