दिल में हमने
दिल में हमने जब भी झाँका बस
मिलन की चाह थी
दूसरा कोई न था बस आह केवल आह थी
ध्यान में उसके जो डूबे डूबते
ही हम गए
वो तो ऐसा सिन्धु था जिसकी न कोई थाह थी
वो बड़ा अनमोल है उसको न कोई
लूट ले
दूर रहकर भी मुझे उसकी ही बस परवाह थी
कौन से जंगल में जाने हम भटक कर
रह गए
शब्द की पगडंडियों पर जब कि अपनी राह थी
इन ग्रहों के खेल में हम पे जो
बीती क्या कहें
एक तो वो रात थी उस पर वो कितनी स्याह थी
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