अनुभूति में
राकेश मधुर की रचनाएँ-
नयी रचनाओं में-
कहाँ ठहरा हुआ
गौर दिल पे
ठीक कोई अनुमान नहीं
न ताकत से न रुतबे से
सबके दिल में
अंजुमन में-
कड़ी धूप में भी
कश्ती में पानी
जैसा तु समझे
वो कहाँ खुद भी देख पाता है |
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न ताकत से न
रुतबे से
न ताक़त से न रुतबे से न ज़र से
कि सँवरे ज़िन्दगी इल्मो-हुनर से
उदू को क्या पता कमजोरियों का
है खतरा हर किसी को मोतबर से
मुसलसल दौड़ता क्यों जा रहा है
कोई बस पूछ ले इतना बशर से
उसे कब याद रखता है शजर भी
जो पत्ता टूट जाता है शजर से
मैं ख़ुद को आज़माना चाहता था
नहीं गुज़रा मैं राहे-मुख़्तसर से
अभी तक मुन्तज़िर हैं बूढ़ी आँखें
नहीं लौटा है बेटा क्यों नगर से
दुआएँ माँ से लेकर मैं चला था
सलामत लौट आया हूँ सफ़र से
१६ फरवरी २०१५ |