अनुभूति में
डॉ राकेश जोशी की रचनाएँ-
नयी रचनाओं में-
कठिन है
कैसे कह दूँ
चाहती है
डर लगता है
मैं सदियों से
अंजुमन में-
अंधकार से लड़ना है
कैसे कैसे लोग शहर में
आज फिर से
जैसे-जैसे बच्चे |
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कैसे-कैसे लोग शहर में
कैसे-कैसे लोग शहर में रहते हैं
जलता है जब शहर तो घर में रहते हैं
जाने क्यों इस धरती के इस कोने के
अक्सर सारे लोग सफ़र में रहते हैं
भूख से मरते लोगों की इस दुनिया में
राजा-रानी रोज़ खबर में रहते हैं
जनता जब मिलकर चलती है सड़कों पर
दरबारों में लोग फिकर में रहते हैं
वो जो इक दिन इस दुनिया को बदलेंगे
मेरी बस्ती, गाँव, नगर में रहते हैं
४ अगस्त २०१४ |