अनुभूति में
डॉ राकेश जोशी की रचनाएँ-
नयी रचनाओं में-
कठिन है
कैसे कह दूँ
चाहती है
डर लगता है
मैं सदियों से
अंजुमन में-
अंधकार से लड़ना है
कैसे कैसे लोग शहर में
आज फिर से
जैसे-जैसे बच्चे |
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चाहती है
ये जनता अब न सहना चाहती है
निज़ामों को बदलना चाहती है
छतों पर जम गई है बर्फ शायद
हरिक दीवार ढहना चाहती है
मैं उसके दिल में रहना चाहता हूँ
वो मेरे साथ रहना चाहती है
नदी कितनी अकेली हो गई है
मेरी आँखों से बहना चाहती है
यहाँ जो जलजला आया है फिर से
ये धरती कुछ तो कहना चाहती है
९ मार्च २०१५ |