अनुभूति में
डॉ राकेश जोशी की रचनाएँ-
नयी रचनाओं में-
कठिन है
कैसे कह दूँ
चाहती है
डर लगता है
मैं सदियों से
अंजुमन में-
अंधकार से लड़ना है
कैसे कैसे लोग शहर में
आज फिर से
जैसे-जैसे बच्चे |
|
डर लगता है
इस धरती पर कुछ लोगों को मर जाने से डर लगता है
और कहीं पर कुछ लोगों को डर जाने से डर लगता है
कानों से सब कुछ सुनकर भी, ज़ुबां बंद रखते हैं वो
जिनको अब भी सच का झंडा फहराने से डर लगता है
जूते पहने घूम रहे हैं शहर-शहर और गली-गली
शायद इनको पाँव ज़रा-सा छिल जाने से डर लगता है
रोज-रोज जिनको सपनों में खूब उजाले दिखते हैं
उनको अक्सर अंधियारों से भर जाने से डर लगता है
वो जो अक्सर ख़ुद ही ख़ुद से आँख बचाते फिरते हैं
उनको अक्सर ख़ुद से ख़ुद के मिल जाने से डर लगता है
राजा को तो रहती ही है चिंता अपनी गद्दी की
महलों को भी कभी अचानक ढह जाने से डर लगता है
९ मार्च २०१५ |