अनुभूति में
डॉ राकेश जोशी की रचनाएँ-
नयी रचनाओं में-
कठिन है
कैसे कह दूँ
चाहती है
डर लगता है
मैं सदियों से
अंजुमन में-
अंधकार से लड़ना है
कैसे कैसे लोग शहर में
आज फिर से
जैसे-जैसे बच्चे |
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अन्धकार से लड़ना है
अन्धकार से लड़ना है, हम ये सोचें
किससे कब तक डरना है, फिर ये सोचें
कभी किसी रिक्शे में जाकर हम बैठें
और कहाँ उतरना है, फिर ये सोचें
धरती पर उछलें, कूदें, झूमें, गाएं
और भी क्या-क्या करना है फिर ये सोचें
किसी नदी को देर तलक हम याद करें
और कहाँ पर झरना है, फिर ये सोचें
आओ, मिलकर खूब करें हंगामा हम
क्या-क्या हमें बदलना है, फिर ये सोचें
बच्चों की हम सभी किताबें पढ़ डालें
और हमें क्या पढ़ना है, फिर ये सोचें
एक झोपड़ी कहीं बनाएं जंगल में
और कहाँ पर रहना है, फिर ये सोचें
४ अगस्त २०१४ |