अनुभूति में
राजकुमार कृषक
की रचनाएँ-
अंजुमन में-
आखर
चाँद कहिए
धूप निकली
परबत के पैंताने
लड़कियाँ |
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लड़कियाँ
लड़कियाँ, लेकर नहीं चलतीं दुपट्टा
लड़कियाँ
हो गई शर्मो-हया के नाम बट्टा लड़कियाँ
बेवजह खुसफुस करेंगी, दाँत
फाड़े जाएँगी
इस कदर पहले कहाँ करती थीं ठट्ठा लड़कियाँ
भाभियों से होड़ ऐसी, हद हुई,
मत पूछिए
लग गई हैं छीनने उनसे ही खट्टा लड़कियाँ
बाखुशी होने लगी हैं खुद
कुजातों की सगी
खानदानों की जड़ों में डाल मट्ठा लड़कियाँ
देखिए अब जिस तरफ़ भी, उस तरफ़
मौजूद हैं
हक़-हकूकों के लिए होकर झपट्टा, लड़कियाँ!
२३ नवंबर २००९ |